दिल्ली मेल संवाददाता
रोहिणी। जन्मदिन मनाने की पाश्चात्य परम्परा को पीछे छोड़ते हुए रोहिणी वार्ड 24 से निगम पार्षद विनोद महेन्द्रू ने 26 अगस्त को ठहरी हुई सनातन संस्कृति की परंपरा को गति देने की कोशिश की। जन्मदिन पर जहां कैंडल बुझाने और केक काटने की परंपरा जोर पकड़ चुकी है वहीं विनोद महेंद्रू ने अपना जन्मदिन दीप जलाकर और माता की चौकी का आयोजन कर मनाया। जिसमें सैकड़ों भाजपा कार्यकतार्ओं और स्थानीय लोगों ने हिस्सा लिया। इस मौके पर लोगों ने अपने लोकप्रिय पार्षद को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं और माता के भजनों का श्रवण किया। माता की भक्ति और विनोद महेन्द्रू के जन्मदिन की खुशी में लोग देर रात तक झूमते और नाचते रहे। उन्हें बधाई देने पहुंचने वालों में रिठाला विधानसभा से पूर्व भाजपा विधायक प्रत्याशी व निगम पार्षद मनीष चौधरी, पूर्व जोन चेयरमैन आलोक शर्मा, भूतपूर्व स्टैंडिंग कमेटी चेयरमैन प्रवेश वाही, उत्तर-पश्चिमी जिला भाजपा अध्यक्ष देवेंद्र स्वलंकी, वार्ड-24 मंडल अध्यक्ष विनय त्यागी आदि के नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं।
इस मौके पर आए सभी लोगों को धन्यवाद देते हुए विनोद महेन्द्रू ने कहा कि हम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति के संवाहक हैं। जिसकी श्रेष्ठता के कारण भारत विश्व गुरु था। किन्तु आज हमें पाश्चात्य परम्परा ने इस प्रकार जकड़ लिया है कि हम सनातन संस्कृति की खूबसूरती और इसकी आध्यात्मिक विशेषता को हीं भूल गए हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम अपनी धार्मिक मान्यताओं और तौर तरीकों को न सिर्फ बढ़ावा दें बल्कि खुद भी बृहद स्तर पर इसे मनाते हुए समाज में नया संदेश दें। श्री महेन्द्रू ने बताया कि मूल रूप से धर्म नगरी हरिद्वार का होने के कारण धार्मिक मान्यताओं में अटूट आस्था रही है। यही कारण है कि अपने प्रत्येक जन्मदिन पर धार्मिक आयोजन और पूजा पाठ कर ईश्वर को यह जीवन देने के लिए धन्यवाद करना उचित समझता हूं। दीप जलाकर जन्मदिन मनाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हिन्दू संस्कृति में शुभ कार्य करने, पूजा करने या कोई आयोजन करने से पूर्व दीप जलाने की परंपरा रही है। हमारा जीवन भी भगवान की अनुकंपा और उनके आर्शीवाद से हीं पुष्पित होता है। यह हमेशा प्रकाशवान और उयमान रहे इसके लिए दीप ज्योति रूपि शक्ति मिलना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हम सभी को न सिर्फ अपने जन्मदिन पर बल्कि किसी भी वर्षगांठ पर जो हम मनाते हैं उसे दीप जलाकर मनाना चाहिए न की केक काटकर और दीप बुझा कर। उन्होंने कहा कि केक काटने और इस दौरान जलते हुए कैंडल (दीप) को बुझाने की परंपरा पाश्चात्य है। यह हमारी मान्यताओं और विचारों से मेल नहीं खाते। इसे लेकर उनकी अपनी मान्यताएं होंगी लेकिन हम उन मान्यताओं का हिस्सा नहीं हैं। यह हम सभी को समझना चाहिए।